सूर्य:- किस भाव में कैसा फल देता है ? Astro Classes, Silvassa.
हैल्लो फ्रेंड्सzzzzz.
आपकी कुण्डली किसी भी लग्न की हो, सूर्य किस घर में बैठेगा तो आपको क्या देगा ? आइये विस्तार से इस बात को जानने का प्रयास करें ।।
सूर्य:- किन-किन भावों में कैसा फल देता है, आइये जानने का प्रयास करें ।।
प्रथम भाव में सूर्य:- ईमानदार, क्रोधी, नेत्र रोगी, अल्प केश, बाल्यावस्था में रुग्ण, कंठ या गुदा में तिलयुक्त, प्रवासी, शूरवीर, कुशाग्र बुद्धि, अस्थिर संपत्ति, धनी, यशस्वी आदि योगकारक सूर्य होता है ।।
दुसरे भाव में सूर्य:- व्यापार में उन्नति, जीवन का उत्तरार्ध विशेष सुखदायक लेकिन युवावस्था में रोगी बनाता है ।।
तीसरे भाव में सूर्य:- साहसी, उग्र राजनीति से लाभ, भ्रातृ विरोध, स्त्री के सहयोग से धनलाभ, धनी, भोगी और शत्रुजित् होता है ।।
चतुर्थ भाव में सूर्य:- अनेक लोगों के साथ विहार करने वाला, कोमल वाणी, गाने-बजाने का प्रेमी, धन-कलत्र संपन्न, राजाओं का प्रिय, कोई सुख नहीं, बंधू व भूमि रहित, पितरों की संपत्ति खर्चने वाला । पागल की तरह घुमने वाला, पितृ बैरी, हृदयरोगी, दुर्बल अंगवाला, निष्ठुर, दुर्बुद्धि, बहुत स्त्रीवाला तथा अन्दर से सदैव उद्विग्न रहने वाला ।।
पञ्चम भाव में सूर्य:- बाल्यावस्था में दु:खी, धनहीन, युवावस्था में व्याधियुक्त, एक ही पुत्रवाला, दुसरे के घरों में रहनेवाला, शूरवीर, चतुर, विलासी, बुद्धिमान, क्रूर कर्म करनेवाला, दुष्टमन वाला, जंगली देशों में भ्रमण करनेवाला, राजा का प्रिय, चंचल बुद्धि, परदेश में रहनेवाला । शिव-पार्वती का भक्त, सत्कर्म व धन से हीन, भ्रमित चित्त, संतान न हो, अगर हो भी तो सूर्य की दशा में नष्ट हो जाय, सूर्य बली हो तो पिता नष्ट होवे, सूर्य चर राशी में हो तो बच्चों को नहीं मारता और अगर अन्य राशियों में हो तो पुत्रनाशक होता है ।।
षष्ठम भाव में सूर्य:- योगाभ्यासी, बुद्धिमान, स्वजनों का हितेच्छुक, स्वजाति को आनंद देने वाला, दुर्बलांग, गृहस्थ पालने वाला, क्रीड़ा करनेवाला, शत्रुओं को जीतनेवाला, शुभकर्म कर्ता, दृढ़ अंगो वाला, धनी, नाना के घर से लाभ, सदा सौख्य युक्त, राज्य अभिमानी, घर में बहुत से पशु रखनेवाला, काष्ठ और पत्थर से विदीर्ण देहवाला, हनु (होठ अथवा ठोढ़ी), कान, वाणी, दांत, नख, आदि घावों से युक्त हो लेकिन लेकिन ये सूर्य 23 वें वर्ष में धन देता है ।।
सप्तम भाव में सूर्य:- स्त्रियों के साथ विहार करनेवाला, अन्य सुखों से हीन, बड़ा ही चंचल, पाप कर्म में प्रवृत्त, फुला शरीर, न अति लम्बा न अति छोटा, कपिल नेत्र, कुरूप, पीले रंग के केश, राजा का कोपभाजन, बिना स्त्री के भटकता फिरे, अपमान सहने वाला, चिंता, व्याकुलता, कामी, ग्रह्यरोगी, स्त्री बंध्या हो, सूर्य की हलके साँवले रंग, लाल नेत्र, चंचल चित्तवाला, मनमाने भाषण करने वाली, लम्बे हाथ, राजस गुणयुक्त, ऐसी उत्तम स्त्री मिले लेकिन अगर पापग्रह का योग हो तो अरिष्ट हो ।।
अष्टम भाव में सूर्य:- अति चंचल, त्यागी, निश्चयी, बुद्धिमान मनुष्यों की सेवा करनेवाला, भाग्यहीन, शीलहीन, रति की अधिकता से मलिन वस्त्र पहनने वाला, नीचों की सेवा करनेवाला, सदा परदेश में रहनेवाला । कृतघ्न, हीन मनुष्यों से भी डरा हुआ, वृथा चलनेवाला, कम संतानवाला, नेत्र चंचल, खूब सुन्दर लेकिन कलही, यदि सूर्य शत्रु क्षेत्री हो तो बिजली अथवा सर्पदंश से मृत्यु, शुभ राशी का हो तो तीर्थादी स्थलों में मृत्यु हो ।।
नवम भाव में सूर्य:- सत्यवक्ता, सुन्दर केश, कुटुम्ब का हितैषी, देवता और गुरु का अनुरागी, पहली अवस्था में रोगी हो, युवावस्था में स्थिरता युक्त, धनवान, दीर्घायु तथा दिब्यस्वरूप वाला । पिता का द्वेषी, संतान और बन्धुयुक्त, गौ-ब्राह्मण भक्त लेकिन भाग्य, विद्या एवं धन से हीन हो, लेकिन कुशल होता है । अगर सूर्य अच्छा हो तो पुत्र, धन के साथ सुख भोगी हो तथा दूसरों के धन से प्रसिद्धि प्राप्त करे । ननिहाल का सुख न हो, पिता और गुरु से द्वेष करनेवाला एवं विधर्मियों के आश्रम में रहनेवाला हो, सूर्य उच्च का एवं स्वक्षेत्री हो तो पूण्य व धर्मरत हो, तीर्थों में जाता है और धर्म करता है । बाद में उसे पुत्र, धन, सौख्य मिले, पापग्रह के साथ हो तो इन सबका नाश हो लेकिन परमोच्च का हो तो राज पद देवे और तीर्थयात्रा करावे ।।
दशम भाव में सूर्य:- सत्यवक्ता सर्वगुणसंपन्न, सुखी लेकिन अभिमानी, कोमल चीजों में रूचि रखनेवाला, नृत्य-गीत से प्रेम करनेवाला और पूज्य राजा होता है । पुत्र, वाहन, स्तुति, ज्ञान, धन, बल, कीर्ति प्राप्त राजा होता है । नीच राशी का सूर्य हो तो पिता से सुख न हो, ऐसे लोग बंधुहीन, कुकर्मी, शीलरहित, चंचलस्त्री वाला, तेज एवं खजाने से रहित होता है तथा १९ वें वर्ष में इसे वियोग सहन करना पड़ता है । लेकिन अगर उच्च का हो तो श्रेष्ठ बुद्धि, श्रेष्ठ वाहन, निश्चय ही धन से युक्त, राजकृपा प्राप्त, पुत्र एवं सौख्य युक्त तथा साधू सेवक होता है । सुखी एवं धनवान, पिता का धन एवं शील प्राप्त, विद्या एवं यश से युक्त, उत्तम वाहन से युक्त एवं सर्व कार्य सिद्ध करने वाला होता है ।।
एकादश भाव में सूर्य:- सूर्य अगर उच्च का हो तो अत्यंत धन का भोगी, राजपरिवार का सेवक, उत्तम गुणों से संपन्न, धन सम्मान, चंचल चित्त हारिणी सुंदरी पत्नी, जाति-बन्धुओं को आनंद देनेवाला, परिश्रम से ही धनार्जन करने वाला, दीर्घजीवी होवे और अगर स्वराशिस्थ हो तो राजा भी बन सकता है । स्वयं भी गायन विद्या में चतुर एवं संगीत का प्रेमी, श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्ति, बड़ा यश एवं बड़ी सम्पदा का मालिक एवं राजा से सदैव धन प्राप्ति होवे । सात्विक, धार्मिक, ज्ञानी एवं सुन्दर (रूपवान) होता है ।।
अगर नीच का हो तो भोगों को भोगने में असमर्थ, दुर्बल अंगवाला तथा सम्पूर्ण फल विपरीत होवे । लेकिन अगर योग्यता प्रमाण से गोचर में अथवा अपनी दशा में उच्च पदवी, उच्चाधिकार, सर्वोन्नती, वस्त्र, रत्न,पशुधन एवं श्रेष्ठ वाहन प्रदान करता है ।।
द्वादश भाव में सूर्य:- मुर्ख, अतिकामी, परस्त्री विलासी, पक्षियों को मारनेवाला, दुष्ट चित्त, कुरूप, राजा से कुछ धन प्राप्त होवे । कथावाचकों का विरोधी, कन्धे का रोगी, अतिदुर्बल अंगों वाला, पिता का द्वेषी, नेत्ररोगी, पुत्र एवं धन से रहित, बाएँ नेत्र में पीड़ा हो, बहूत खर्चीला, रोगी, शरारती, व्यसनी तथा राजकोष से चोरी (घोटाला) करने वाला होता है ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
आपकी कुण्डली किसी भी लग्न की हो, सूर्य किस घर में बैठेगा तो आपको क्या देगा ? आइये विस्तार से इस बात को जानने का प्रयास करें ।।
सूर्य:- किन-किन भावों में कैसा फल देता है, आइये जानने का प्रयास करें ।।
प्रथम भाव में सूर्य:- ईमानदार, क्रोधी, नेत्र रोगी, अल्प केश, बाल्यावस्था में रुग्ण, कंठ या गुदा में तिलयुक्त, प्रवासी, शूरवीर, कुशाग्र बुद्धि, अस्थिर संपत्ति, धनी, यशस्वी आदि योगकारक सूर्य होता है ।।
दुसरे भाव में सूर्य:- व्यापार में उन्नति, जीवन का उत्तरार्ध विशेष सुखदायक लेकिन युवावस्था में रोगी बनाता है ।।
तीसरे भाव में सूर्य:- साहसी, उग्र राजनीति से लाभ, भ्रातृ विरोध, स्त्री के सहयोग से धनलाभ, धनी, भोगी और शत्रुजित् होता है ।।
चतुर्थ भाव में सूर्य:- अनेक लोगों के साथ विहार करने वाला, कोमल वाणी, गाने-बजाने का प्रेमी, धन-कलत्र संपन्न, राजाओं का प्रिय, कोई सुख नहीं, बंधू व भूमि रहित, पितरों की संपत्ति खर्चने वाला । पागल की तरह घुमने वाला, पितृ बैरी, हृदयरोगी, दुर्बल अंगवाला, निष्ठुर, दुर्बुद्धि, बहुत स्त्रीवाला तथा अन्दर से सदैव उद्विग्न रहने वाला ।।
पञ्चम भाव में सूर्य:- बाल्यावस्था में दु:खी, धनहीन, युवावस्था में व्याधियुक्त, एक ही पुत्रवाला, दुसरे के घरों में रहनेवाला, शूरवीर, चतुर, विलासी, बुद्धिमान, क्रूर कर्म करनेवाला, दुष्टमन वाला, जंगली देशों में भ्रमण करनेवाला, राजा का प्रिय, चंचल बुद्धि, परदेश में रहनेवाला । शिव-पार्वती का भक्त, सत्कर्म व धन से हीन, भ्रमित चित्त, संतान न हो, अगर हो भी तो सूर्य की दशा में नष्ट हो जाय, सूर्य बली हो तो पिता नष्ट होवे, सूर्य चर राशी में हो तो बच्चों को नहीं मारता और अगर अन्य राशियों में हो तो पुत्रनाशक होता है ।।
षष्ठम भाव में सूर्य:- योगाभ्यासी, बुद्धिमान, स्वजनों का हितेच्छुक, स्वजाति को आनंद देने वाला, दुर्बलांग, गृहस्थ पालने वाला, क्रीड़ा करनेवाला, शत्रुओं को जीतनेवाला, शुभकर्म कर्ता, दृढ़ अंगो वाला, धनी, नाना के घर से लाभ, सदा सौख्य युक्त, राज्य अभिमानी, घर में बहुत से पशु रखनेवाला, काष्ठ और पत्थर से विदीर्ण देहवाला, हनु (होठ अथवा ठोढ़ी), कान, वाणी, दांत, नख, आदि घावों से युक्त हो लेकिन लेकिन ये सूर्य 23 वें वर्ष में धन देता है ।।
सप्तम भाव में सूर्य:- स्त्रियों के साथ विहार करनेवाला, अन्य सुखों से हीन, बड़ा ही चंचल, पाप कर्म में प्रवृत्त, फुला शरीर, न अति लम्बा न अति छोटा, कपिल नेत्र, कुरूप, पीले रंग के केश, राजा का कोपभाजन, बिना स्त्री के भटकता फिरे, अपमान सहने वाला, चिंता, व्याकुलता, कामी, ग्रह्यरोगी, स्त्री बंध्या हो, सूर्य की हलके साँवले रंग, लाल नेत्र, चंचल चित्तवाला, मनमाने भाषण करने वाली, लम्बे हाथ, राजस गुणयुक्त, ऐसी उत्तम स्त्री मिले लेकिन अगर पापग्रह का योग हो तो अरिष्ट हो ।।
अष्टम भाव में सूर्य:- अति चंचल, त्यागी, निश्चयी, बुद्धिमान मनुष्यों की सेवा करनेवाला, भाग्यहीन, शीलहीन, रति की अधिकता से मलिन वस्त्र पहनने वाला, नीचों की सेवा करनेवाला, सदा परदेश में रहनेवाला । कृतघ्न, हीन मनुष्यों से भी डरा हुआ, वृथा चलनेवाला, कम संतानवाला, नेत्र चंचल, खूब सुन्दर लेकिन कलही, यदि सूर्य शत्रु क्षेत्री हो तो बिजली अथवा सर्पदंश से मृत्यु, शुभ राशी का हो तो तीर्थादी स्थलों में मृत्यु हो ।।
नवम भाव में सूर्य:- सत्यवक्ता, सुन्दर केश, कुटुम्ब का हितैषी, देवता और गुरु का अनुरागी, पहली अवस्था में रोगी हो, युवावस्था में स्थिरता युक्त, धनवान, दीर्घायु तथा दिब्यस्वरूप वाला । पिता का द्वेषी, संतान और बन्धुयुक्त, गौ-ब्राह्मण भक्त लेकिन भाग्य, विद्या एवं धन से हीन हो, लेकिन कुशल होता है । अगर सूर्य अच्छा हो तो पुत्र, धन के साथ सुख भोगी हो तथा दूसरों के धन से प्रसिद्धि प्राप्त करे । ननिहाल का सुख न हो, पिता और गुरु से द्वेष करनेवाला एवं विधर्मियों के आश्रम में रहनेवाला हो, सूर्य उच्च का एवं स्वक्षेत्री हो तो पूण्य व धर्मरत हो, तीर्थों में जाता है और धर्म करता है । बाद में उसे पुत्र, धन, सौख्य मिले, पापग्रह के साथ हो तो इन सबका नाश हो लेकिन परमोच्च का हो तो राज पद देवे और तीर्थयात्रा करावे ।।
दशम भाव में सूर्य:- सत्यवक्ता सर्वगुणसंपन्न, सुखी लेकिन अभिमानी, कोमल चीजों में रूचि रखनेवाला, नृत्य-गीत से प्रेम करनेवाला और पूज्य राजा होता है । पुत्र, वाहन, स्तुति, ज्ञान, धन, बल, कीर्ति प्राप्त राजा होता है । नीच राशी का सूर्य हो तो पिता से सुख न हो, ऐसे लोग बंधुहीन, कुकर्मी, शीलरहित, चंचलस्त्री वाला, तेज एवं खजाने से रहित होता है तथा १९ वें वर्ष में इसे वियोग सहन करना पड़ता है । लेकिन अगर उच्च का हो तो श्रेष्ठ बुद्धि, श्रेष्ठ वाहन, निश्चय ही धन से युक्त, राजकृपा प्राप्त, पुत्र एवं सौख्य युक्त तथा साधू सेवक होता है । सुखी एवं धनवान, पिता का धन एवं शील प्राप्त, विद्या एवं यश से युक्त, उत्तम वाहन से युक्त एवं सर्व कार्य सिद्ध करने वाला होता है ।।
एकादश भाव में सूर्य:- सूर्य अगर उच्च का हो तो अत्यंत धन का भोगी, राजपरिवार का सेवक, उत्तम गुणों से संपन्न, धन सम्मान, चंचल चित्त हारिणी सुंदरी पत्नी, जाति-बन्धुओं को आनंद देनेवाला, परिश्रम से ही धनार्जन करने वाला, दीर्घजीवी होवे और अगर स्वराशिस्थ हो तो राजा भी बन सकता है । स्वयं भी गायन विद्या में चतुर एवं संगीत का प्रेमी, श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्ति, बड़ा यश एवं बड़ी सम्पदा का मालिक एवं राजा से सदैव धन प्राप्ति होवे । सात्विक, धार्मिक, ज्ञानी एवं सुन्दर (रूपवान) होता है ।।
अगर नीच का हो तो भोगों को भोगने में असमर्थ, दुर्बल अंगवाला तथा सम्पूर्ण फल विपरीत होवे । लेकिन अगर योग्यता प्रमाण से गोचर में अथवा अपनी दशा में उच्च पदवी, उच्चाधिकार, सर्वोन्नती, वस्त्र, रत्न,पशुधन एवं श्रेष्ठ वाहन प्रदान करता है ।।
द्वादश भाव में सूर्य:- मुर्ख, अतिकामी, परस्त्री विलासी, पक्षियों को मारनेवाला, दुष्ट चित्त, कुरूप, राजा से कुछ धन प्राप्त होवे । कथावाचकों का विरोधी, कन्धे का रोगी, अतिदुर्बल अंगों वाला, पिता का द्वेषी, नेत्ररोगी, पुत्र एवं धन से रहित, बाएँ नेत्र में पीड़ा हो, बहूत खर्चीला, रोगी, शरारती, व्यसनी तथा राजकोष से चोरी (घोटाला) करने वाला होता है ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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