व्यापारिक, व्यवसायिक भवनों को वास्तु शास्त्र के अनुरूप कैसे बनाएं - वास्तु टिप्स ।।
आइये जानें - अपने व्यापारिक, व्यवसायिक भवनों को वास्तु शास्त्र के अनुरूप कैसे बनाएं - वास्तु टिप्स ।।
हैल्लो फ्रेंड्सzzzzz.
वास्तु शास्त्र के निम्नांकित कुछ ऐसे सिद्धांत हैं, जिन्हें कम्पनीयों के भवन, बड़े से बड़े काम्प्लेक्स, ऑफिस, शॉपिंग मॉल आदि बनवाते (बनाते) समय अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए । अपने व्यापारिक, व्यवसायिक भवन की समृद्धि के लिए वास्तु शास्त्र के निम्न नियमों का पालन हर किसी को अवश्य ही करना चाहिए ।।
तो सर्वप्रथम आइये जानते हैं, कि आपका मुख्य प्रवेश द्वार कहाँ, कैसा और किस प्रकार से होना चाहिए ?
१.मुख्य प्रवेश द्वार - अगर आपका भूखंड उत्तर मुखी है तो मुख्य द्वार ईशान [उत्तर-पूर्व] कोण में, आपका भूखंड पूर्व मुखी है तो मुख्य द्वार ईशान कोण में ही, अगर भूखंड दक्षिण मुखी है तो मुख्य द्वार आग्नेय [दक्षिण-पूर्व] कोण में और अगर भूखंड पश्चिम मुखी है तो मुख्य द्वार वायव्य [उत्तर-पश्चिम] कोण में उत्तम (रहेगा) होता है ।।
२.जमीन का ढाल - जैसा कि मैंने अपने पहले के लेखों में कई बार ये बता चूका हूँ, कि आपके भूखण्ड का ढलान दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर ही होनी चाहिए ।।
३.सुरक्षा गार्ड का कमरा - आपके भवन कि सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मीयों के रहने के लिए जो स्थान निर्धारित होना चाहिए, वो आपके भूखण्ड के दरवाजे अगर उत्तर कि और हैं, तो उत्तरी द्वार पर रहनेवाले सुरक्षाकर्मीयों के द्वार पूर्व मुखी होने चाहिएँ । जबकि पूर्वी द्वार में उत्तर मुखी, पश्चिमी द्वार में उत्तर मुखी एवं दक्षिणी द्वार पर तैनात सुरक्षाकर्मीयों के दरवाजे का मुख पूर्व मुखी होना चाहिए ।।
४.पार्किंग - गाड़ियों की पार्किंग वायव्य कोण में अथवा पूर्वोत्तर दिशा में होना चाहिए ।।
५.अपने भूखण्ड पर भवन निर्माण करते समय भूखण्ड के दक्षिण एवं पश्चिम में कम से कम खुली जगह रखें और ठीक इसके विपरीत उत्तर पूर्व में अधिक से अधिक खुली जगह रखें ।।
६.अपने भूखण्ड पर बनने वाले भवन के दक्षिण, पश्चिम एवं नैऋत्य कोण में बड़े तथा लम्बे ऊँचे पेड़ लगाने चाहिए ।।
७.अपने भूखण्ड पर बनने वाले भवन के उत्तर, पूर्व तथा ईशान कोण में छोटे-छोटे पौधे लगाना चाहिए जिसे लाँन या देशी भाषा में फुलवाड़ी कहते हैं ।।
८.आपके व्यापारिक प्रतिष्ठानों में, व्यवसायिक भवनों में कुआँ, बोरिंग के लिए बोर या जमीन के अंदर पानी की टंकी ईशान कोण में ही होना लाभदायक होता है ।।
९.अपने भूखण्ड का ईशान कोण जिसे हमेशा खाली, साफ सुथरा व हल्का रखना चाहिए । और यही वजह है, कि हमारे शास्त्र ईशान कोण में मन्दिर बनाने को बताते हैं, ताकि यह कोण हमेशा साफ-सुथरा, पवित्र एवं हल्का बना रहे ।।
१०.आपके भवन हेतु निर्मित होने वाला सेप्टिक टैंक अवश्य ही वायव्य कोण या पश्चिम दिशा में निर्मित होना चाहिए ।।
११.मित्रों, यदि आपको तहखाना बनाने की जरूरत लगता हो, तो इसे सदैव पूर्व दिशा में, उत्तर या फिर अपने भूखण्ड के ईशान कोण में ही बनाना चाहिए ।।
१२.आपके तहखाने के फर्श का पूरा ढाल ईशान कोण में ही होना चाहिए ।।
१३.तहखाने से बरसात के पानी को बाहर निकालने के लिए निर्मित तहखाने के ही ईशान कोण में सम्प बनाना लाभदायक रहता है ।।
१४.आफिस या रिसेप्शन काउन्टर का निर्माण सदैव ही भवन के दक्षिण या पश्चिम दीवाल में ऐसा बनाना चाहिए जिससे मालिक का मुंह हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर ही रहे ।।
१५.स्वागत कक्ष या प्रतीक्षा कक्ष को हमेशा ईशान कोण, उत्तर या पूर्व दिशा में बनाना ज्यादा लाभदायक रहता है ।।
१६.आग से बचाव के लिए "संयंत्र और आग बुझाने वाले सिलेंडर" सदैव अग्नि कोण या वायव्य कोण में होना उपयुक्त माना जाता है ।।
१७.सदैव बड़ा अधिकारी, मालिक अथवा मैनेजर को निर्मित भवन के नैऋत्य कोण [दक्षिण-पश्चिम] में उत्तर की ओर मुंह करके बैठना चाहिए ।।
१८.कांफ्रेंस हाल को उत्तर दिशा अथवा पूर्व या ईशान कोण में बनाना लाभदायक होता है ।।
१९.अगर आपकी फैक्ट्री में मन्दिर न हो अथवा हो तो भी यदि आप अपने ऑफिस के अंदर पूजा स्थल रखना चाहे तो ईशान कोण के पूर्वी दीवाल में रखनी चाहिए ।।
२०.आपकी फैक्ट्री में हवा और प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कार्यरत अधिकारीयों को किसी प्रकार कि कोई समस्या न आये ।।
२१.वास्तु शास्त्र के अनुसार किचन अथवा पैन्ट्री को अपने भवन या भूखण्ड के आग्नेय कोण में बनाना चाहिए ।।
२२.शौचालय निर्मित भवनों के वायव्य, पश्चिम या दक्षिण हिस्से में बनाना चाहिए ।।
२३.छत के उपर पानी कि टंकी - छत के उपर पानी की टंकी पुरे छत (टेरिस) के क्षेत्रफल के अनुसार उसके नैऋत्य कोण में ही बनानी चाहिए ।।
२४.जनरेटर या ट्रांसफार्मर - अग्नि से चलने वाले सारे सामान जैसे ट्रांसफार्मर, जनरेटर, लाईट का मीटर इन सबको भूखण्ड के आग्नेय कोण की दिशा में ही रखना चाहिए ।।
२५.सीढ़ी हमेशा दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम भाग में बनवानी चाहिए, और सीढ़ी को ऐसा बनवाएं कि वो हमेशा घडी की दिशा में ही घूमते हुए उपर की और चढ़े । लिफ्ट को भी हमेशा उसी दिशा में (दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम) बनवानी चाहिए ।।
२६.गोदाम, भण्डार कक्ष या स्टोर रूम भी सीढ़ी कि ही दिशा में अथवा उसी के आस-पास दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में ही होना चाहिए ।।
२७.कैशियर को हमेशा उत्तर की दिशा में मुंह करके बैठना चाहिए । कैश बॉक्स को हमेशा दाएं हाथ से उत्तर दिशा की ओर खोलनी चाहिए । कैश बॉक्स में सदैव ही धनाधिपति कुबेर, माता महालक्ष्मी और स्फटिक के श्री यंत्र की स्थापना करके रखनी चाहिए ।।
२८.समृद्धि और ग्राहक को आकर्षित करने के लिए काउन्टर में मछली घर को उत्तर दिशा में रखना चाहिए । मेजेनायिन फ्लोर को दक्षिण या पश्चिम दीवाल से लगाकर बनाना चाहिए ।।
२९.ए. सी. संयंत्र आग्नेय कोण में लगाना चाहिए । यदि हर कमरे में अलग अलग ए. सी. लगानी हो तो हर कमरे के अग्नि कोण अथवा दक्षिण या वायव्य कोण में लगानी चाहिए ।।
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वास्तु शास्त्र के निम्नांकित कुछ ऐसे सिद्धांत हैं, जिन्हें कम्पनीयों के भवन, बड़े से बड़े काम्प्लेक्स, ऑफिस, शॉपिंग मॉल आदि बनवाते (बनाते) समय अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए । अपने व्यापारिक, व्यवसायिक भवन की समृद्धि के लिए वास्तु शास्त्र के निम्न नियमों का पालन हर किसी को अवश्य ही करना चाहिए ।।
तो सर्वप्रथम आइये जानते हैं, कि आपका मुख्य प्रवेश द्वार कहाँ, कैसा और किस प्रकार से होना चाहिए ?
१.मुख्य प्रवेश द्वार - अगर आपका भूखंड उत्तर मुखी है तो मुख्य द्वार ईशान [उत्तर-पूर्व] कोण में, आपका भूखंड पूर्व मुखी है तो मुख्य द्वार ईशान कोण में ही, अगर भूखंड दक्षिण मुखी है तो मुख्य द्वार आग्नेय [दक्षिण-पूर्व] कोण में और अगर भूखंड पश्चिम मुखी है तो मुख्य द्वार वायव्य [उत्तर-पश्चिम] कोण में उत्तम (रहेगा) होता है ।।
२.जमीन का ढाल - जैसा कि मैंने अपने पहले के लेखों में कई बार ये बता चूका हूँ, कि आपके भूखण्ड का ढलान दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर ही होनी चाहिए ।।
३.सुरक्षा गार्ड का कमरा - आपके भवन कि सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मीयों के रहने के लिए जो स्थान निर्धारित होना चाहिए, वो आपके भूखण्ड के दरवाजे अगर उत्तर कि और हैं, तो उत्तरी द्वार पर रहनेवाले सुरक्षाकर्मीयों के द्वार पूर्व मुखी होने चाहिएँ । जबकि पूर्वी द्वार में उत्तर मुखी, पश्चिमी द्वार में उत्तर मुखी एवं दक्षिणी द्वार पर तैनात सुरक्षाकर्मीयों के दरवाजे का मुख पूर्व मुखी होना चाहिए ।।
४.पार्किंग - गाड़ियों की पार्किंग वायव्य कोण में अथवा पूर्वोत्तर दिशा में होना चाहिए ।।
५.अपने भूखण्ड पर भवन निर्माण करते समय भूखण्ड के दक्षिण एवं पश्चिम में कम से कम खुली जगह रखें और ठीक इसके विपरीत उत्तर पूर्व में अधिक से अधिक खुली जगह रखें ।।
६.अपने भूखण्ड पर बनने वाले भवन के दक्षिण, पश्चिम एवं नैऋत्य कोण में बड़े तथा लम्बे ऊँचे पेड़ लगाने चाहिए ।।
७.अपने भूखण्ड पर बनने वाले भवन के उत्तर, पूर्व तथा ईशान कोण में छोटे-छोटे पौधे लगाना चाहिए जिसे लाँन या देशी भाषा में फुलवाड़ी कहते हैं ।।
८.आपके व्यापारिक प्रतिष्ठानों में, व्यवसायिक भवनों में कुआँ, बोरिंग के लिए बोर या जमीन के अंदर पानी की टंकी ईशान कोण में ही होना लाभदायक होता है ।।
९.अपने भूखण्ड का ईशान कोण जिसे हमेशा खाली, साफ सुथरा व हल्का रखना चाहिए । और यही वजह है, कि हमारे शास्त्र ईशान कोण में मन्दिर बनाने को बताते हैं, ताकि यह कोण हमेशा साफ-सुथरा, पवित्र एवं हल्का बना रहे ।।
१०.आपके भवन हेतु निर्मित होने वाला सेप्टिक टैंक अवश्य ही वायव्य कोण या पश्चिम दिशा में निर्मित होना चाहिए ।।
११.मित्रों, यदि आपको तहखाना बनाने की जरूरत लगता हो, तो इसे सदैव पूर्व दिशा में, उत्तर या फिर अपने भूखण्ड के ईशान कोण में ही बनाना चाहिए ।।
१२.आपके तहखाने के फर्श का पूरा ढाल ईशान कोण में ही होना चाहिए ।।
१३.तहखाने से बरसात के पानी को बाहर निकालने के लिए निर्मित तहखाने के ही ईशान कोण में सम्प बनाना लाभदायक रहता है ।।
१४.आफिस या रिसेप्शन काउन्टर का निर्माण सदैव ही भवन के दक्षिण या पश्चिम दीवाल में ऐसा बनाना चाहिए जिससे मालिक का मुंह हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर ही रहे ।।
१५.स्वागत कक्ष या प्रतीक्षा कक्ष को हमेशा ईशान कोण, उत्तर या पूर्व दिशा में बनाना ज्यादा लाभदायक रहता है ।।
१६.आग से बचाव के लिए "संयंत्र और आग बुझाने वाले सिलेंडर" सदैव अग्नि कोण या वायव्य कोण में होना उपयुक्त माना जाता है ।।
१७.सदैव बड़ा अधिकारी, मालिक अथवा मैनेजर को निर्मित भवन के नैऋत्य कोण [दक्षिण-पश्चिम] में उत्तर की ओर मुंह करके बैठना चाहिए ।।
१८.कांफ्रेंस हाल को उत्तर दिशा अथवा पूर्व या ईशान कोण में बनाना लाभदायक होता है ।।
१९.अगर आपकी फैक्ट्री में मन्दिर न हो अथवा हो तो भी यदि आप अपने ऑफिस के अंदर पूजा स्थल रखना चाहे तो ईशान कोण के पूर्वी दीवाल में रखनी चाहिए ।।
२०.आपकी फैक्ट्री में हवा और प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कार्यरत अधिकारीयों को किसी प्रकार कि कोई समस्या न आये ।।
२१.वास्तु शास्त्र के अनुसार किचन अथवा पैन्ट्री को अपने भवन या भूखण्ड के आग्नेय कोण में बनाना चाहिए ।।
२२.शौचालय निर्मित भवनों के वायव्य, पश्चिम या दक्षिण हिस्से में बनाना चाहिए ।।
२३.छत के उपर पानी कि टंकी - छत के उपर पानी की टंकी पुरे छत (टेरिस) के क्षेत्रफल के अनुसार उसके नैऋत्य कोण में ही बनानी चाहिए ।।
२४.जनरेटर या ट्रांसफार्मर - अग्नि से चलने वाले सारे सामान जैसे ट्रांसफार्मर, जनरेटर, लाईट का मीटर इन सबको भूखण्ड के आग्नेय कोण की दिशा में ही रखना चाहिए ।।
२५.सीढ़ी हमेशा दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम भाग में बनवानी चाहिए, और सीढ़ी को ऐसा बनवाएं कि वो हमेशा घडी की दिशा में ही घूमते हुए उपर की और चढ़े । लिफ्ट को भी हमेशा उसी दिशा में (दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम) बनवानी चाहिए ।।
२६.गोदाम, भण्डार कक्ष या स्टोर रूम भी सीढ़ी कि ही दिशा में अथवा उसी के आस-पास दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में ही होना चाहिए ।।
२७.कैशियर को हमेशा उत्तर की दिशा में मुंह करके बैठना चाहिए । कैश बॉक्स को हमेशा दाएं हाथ से उत्तर दिशा की ओर खोलनी चाहिए । कैश बॉक्स में सदैव ही धनाधिपति कुबेर, माता महालक्ष्मी और स्फटिक के श्री यंत्र की स्थापना करके रखनी चाहिए ।।
२८.समृद्धि और ग्राहक को आकर्षित करने के लिए काउन्टर में मछली घर को उत्तर दिशा में रखना चाहिए । मेजेनायिन फ्लोर को दक्षिण या पश्चिम दीवाल से लगाकर बनाना चाहिए ।।
२९.ए. सी. संयंत्र आग्नेय कोण में लगाना चाहिए । यदि हर कमरे में अलग अलग ए. सी. लगानी हो तो हर कमरे के अग्नि कोण अथवा दक्षिण या वायव्य कोण में लगानी चाहिए ।।
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Website :: www.astroclasses.com
।।। नारायण नारायण ।।।
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