Kalash Poojanam; BALAJI VEDA VIDYALAYA.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, बालाजी वेद विद्यालय, सिलवासा (BALAJI VED VIDYALAYA, SILVASSA.) के तरफ से कलश पूजन की सरल प्रक्रिया का आप सभी को उपहार;
मित्रों,
आप सभी को पूजन विधान के अंतर्गत मैंने पहले पूजन की तैयारी, पूजा सामग्री
सजाने की विधि बताया । आगे भी मैंने अपने दुसरे अंक में आचमन, प्राणायाम,
पवित्रीकरण, तिलक धारण करने की विधि से लेकर रक्षा विधान तक बताया ।।मित्रों, बालाजी वेद विद्यालय, सिलवासा (BALAJI VED VIDYALAYA, SILVASSA.) के तरफ से कलश पूजन की सरल प्रक्रिया का आप सभी को उपहार;
अब यहाँ से आगे कलश पूजन की प्रक्रिया सरल करके सहज भाषा में बताने का प्रयास कर रहा हूँ ।।
अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पूर्व के लेखों को एक बार जरूर पढ़ लें ।।
प्रथम पूजन की व्यवस्था, दीप प्रज्वालन, आचमन, पवित्रकरण, आसन शुद्धि, पवित्री धारणं, तिलक करणं, ग्रंथि बन्धनं, रक्षा विधान ।।
आचार्यादिवरण:- हाथ में जल लेकर ॐ तत्सत.... तिथौ आचार्यादिऋत्विजां वरणमहं करिष्ये, आचार्य को पूर्वाभिमुख बैठाकर पाँव धोवें तथा गन्धाक्षत से पञ्चोपचार पूजन कर हाथ में वरण द्रव्य, जल और अक्षत लेकर दाहिने घुटने का स्पर्श करते हुए आचार्य वरण का संकल्प करें ।।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य....अमुकगोत्र प्रवरशाखान्वितयजमानोऽहम् अमुकगोत्रप्रवरशाखाध्यायिनममु
पुनः आचार्य के हाथ में निम्नलिखित मंत्र पढ़कर वरण हेतु मंगल रक्षा सूत्र बांधे ।।
ॐ व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम् ।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ।।
पुनः वरण द्रव्य लेकर निम्न संकल्प पूर्वक ऋत्विक् का वरण करें ।।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य....अमुकगोत्र.... अस्मिन् अमुककर्मणि ऋत्विग्त्वेन त्वामहं वृणे । ऋत्विक् कहे-वृत्तोऽस्मि ।।
पुनः प्रार्थना:- अस्य यागस्य निष्पत्तौ भवन्तोऽभ्यर्चिता मया ।।
सुप्रसन्नैः प्रकर्तव्य कर्मेदं विधिपूर्वकम् ।।
पुनः ऋत्विक् के साथ आचार्य अपने आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम कर सङ्कल्प करें ।।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य....अमुकगोत्र.... अस्मिन् कर्मणि यजमानेन वृतोऽहं आचार्य-(ऋत्विक्)-कर्म करिष्ये ।।
सर्वप्रथम गणपत्यादी देवताओं का स्मरण करते हुए बायें हाथ में श्वेत या पीला सरसों अथवा अक्षत और साथ में रक्षासूत्र लेकर दाहिने हाथ से उसे ढ़ककर इन मन्त्रों से अभिमंत्रित करे ।।
ॐ गणाधिपं नमस्कृत्य नमस्कृत्य पितामहम् ।
विष्णुं रुद्रं श्रियं देवीं वन्दे भक्त्या सरस्वतीम् ।।
स्थानाधिपं नमस्कृत्य ग्रह्नाथं निशाकरम् ।
धरणीगर्भसम्भूतं शाशिपुत्रं बृहस्पतिम् ।।
दैत्याचार्यं नमस्कृत्य सूर्यपुत्रं महाग्रहम् ।
राहुं केतुं नमस्कृत्य यज्ञारम्भे विशेषतः ।।
शक्राद्याः देवताः सर्वाः मुनींश्चैव तपोधनान् ।
गर्गं मुनिं नमस्कृत्य नारदं मुनिसत्तमम् ।।
वशिष्ठं मुनिशार्दूलं विश्वामित्रं च गोभिलम् ।
व्यासं मुनिं नमस्कृत्य सर्वशास्त्रविशारदम् ।।
विद्याधिका ये मुनय आचार्याश्च तपोधना: ।
तान् सर्वांन् प्रणमाम्येवं यज्ञरक्षाकरान् सदा ।।
अब रक्षासूत्र को उतारकर श्री गणेश भगवान के श्रीचरणों में रख दें और सरसों या अक्षत से इन मन्त्रों से दिग् रक्षण करे ।।
ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेय्यां गरुडध्वजः ।
दक्षिणे पद्मनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ।।
पश्चिमे पातु गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः ।
उत्तरे श्रीपती रक्षेदैशान्यां तु महेश्वरः ।।
ऊर्ध्वं गोवर्धनो रक्षेद् ह्यधोऽनन्तस्तथैव च ।
एवं दश दिशो रक्षेद्वासुदेवो जनार्दनः।।
यजमानं सपत्नीक पुण्डरीकविलोचनः।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं रक्षत्वीशो महाद्रिधृक् ।।
यदत्रं संस्थितं भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वदा ।
स्थानं त्यक्त्वा तु तत्सर्वं यत्रस्थं तत्र गच्छतु ।।
सरसों या अक्षत सभी दिशाओं में छींट दें । भूतोत्सारण:-
ॐ अपक्रामन्तु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः ।
ये भूता विध्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिश: ।
सर्वेषामविरोधेन शान्तिकर्म समारभे ।।
उपर्युक्त श्लोकों को ही पढ़ते हुए बायें हाथ और बाएं पाँव को तीन बार भूमि पर पटकें ।।
रक्षाबन्धन:- यजमान तीन धागा वाला लाल सूत्र एवं थोड़ा द्रव्य बायें हाथ में लेकर एवं दाहिने हाथ से ढककर ‘‘ॐ हुं फट्’’ यह मंत्र तीन बार बोलकर उस सूत्र को गणपति के चरणों में निवेदित करें । पुनः गन्ध पुष्प से उसकी पूजा करें । फिर यह रक्षा सूत्र गणपति के अनुग्रह से प्राप्त हुआ ऐसा समझते हुए अन्य देवों को भी निवेदित करते हुए पुनः आचार्य सहित अन्य विप्रों के सीधे दाहिने हाथ में निम्न मंत्र से बांधे:-
ॐ व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ।।
उसके बाद आचार्य भी यजमान के दाहिने हाथ में और यजमान पत्नी के बांयें हाथ में निम्न मंत्र पढ़ते हुए अभिमन्त्रित रक्षा सूत्र बांधें ।।
मन्त्र:- १.ॐ यदाबध्नं दाक्षायणा हिरण्य (गुं) शतानीकाय सुमनस्यमाना: ।
तन्म आबध्नामि शतशारदायायुष्मांजरदष्टिर्यथा
२.ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
वरुण कलश स्थापन:- हाथ में गन्ध, अक्षत और पुष्प लेकर पृथ्वी की पूजा करें:-
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री ।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ (गुं) ह पृथिवीं माहि (गुं) सीः ।।
कलश स्थापित किये जाने वाली भूमि पर रोली से अष्टदल कमल बनाकर उत्तान हाथों से भूमि का स्पर्श करें:-
ॐ महीद्यौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम् ।
पिपृतान्नो भरीमभिः ।।
पुनः इस मंत्र से सप्तधान्य अथवा जौ रखें:-
ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान्प्राणायत्त्वोदानायत्वा व्यानायत्वा दीर्घानुप्रसितिमायुषेधान्देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वां महीनां पयोसि ।।
कलश में स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर तीन धागेवाली मौली को उसमें लपेंटे । पुनः धातु या मिट्टी के कलश को जौ के ऊपर इस मंत्र को पढ़कर स्थापित करें:-
ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशत्विंदवः । पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहश्रन्धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः ।।
कलश में जल:- ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद ।।
गन्ध डालें:- ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्नये श्रियम् ।।
चन्दन लेपकर सर्वौषधि डालें:-
ॐ या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रिायुगं पुरा ।
मनै नु बभ्रूणामहं शतं धामानि सप्त च ।।
कलश में सप्तधान्य डालें:-
ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान्प्राणायत्त्वोदानायत्वा व्यानायत्वा दीर्घानुप्रसितिमायुषेधान्देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वां महीनां पयोसि ।।
दूर्वा कलश में डालें:-
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि ।
एवानो दूर्वे प्रतनु सहश्रेण शतेन च ।।
पंचपल्लव कलश में डालें:-
ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ।।
सप्तमृत्तिका कलश में डालें:-
ॐ स्योना पृथिविनो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ।।
पूगीफल कलश में डालें:- ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः । बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व (गुं) हसः ।।
पंचरत्न कलश में डालें:-
ॐ परिवाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् दधद्रत्नानि दाशुषे ।।
दक्षिणा कलश में डालें:-
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।
सदाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ।।
कुशा पवित्री कलश में डालें:-
ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव: उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।।
मौन रहकर पुष्प डालें और लाल वस्त्र या मौली कण्ठ में लपेटें:-
ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः ।
तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो3 मनसा देवयन्तः ।।
चावल से भरा पूर्ण पात्र कलश के ऊपर रखें:-
ॐ पूर्णादर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत ।
वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज र्ठ. शतक्रतो ।।
रक्त वस्त्र से लिपटा नारियल:-
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रुपमश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्णन्निषाणामुं म इषाण सर्वलोकं म इषाण ।।
वरुणावाहन मन्त्राः -
ॐ तत्वा यामि ब्राह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।
अहेडमानो वरुणेह बोद्धयुरुश (गुं) स मा न आयुः प्र मोषीः ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्ंग सपरिवारं सायुधं सशक्तिकम् आवाहयामि ।।
वरुण ध्यानम्:- वरुणः पाशभूत्सौम्यः प्रतीच्यां मकराश्रयः । पाशहस्तात्मको देवो जलराश्यधिपो महान् ।।
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर प्रतिष्ठा:- ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ र्ठ. समिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ।।
ॐ वं वरुणाय नमः सुप्रतिष्ठितो वरदो भव ।।
पुनः ॐ भूर्भुवः स्वः अपां पतये वरुणाय नमः इस मंत्र से पञ्चोपचार या षोडशोपचार पूजन करें, फिर वरुण देव की प्रार्थना करें:-
वरुण प्रार्थना:-
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्लाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ।।
इस मन्त्र से पुष्पाञ्जलि अर्पित करे:-
ॐ तत्वायामि ब्राह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः ।
अहेडमानो वरुणेह बोद्धयुरुश (गुं) स मा न आयुः प्रमोषीः ।।
ॐ अनेन पूजनेन वरुणः प्रीयताम् जल छोड़ दें ।।
कलश पर गंगा गायत्री आदि का आवाहन करें:-
गङ्गाद्यावाहन:- ॐ सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः ।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः ।।
पुनः कलश पर अक्षत छींटें:-- ॐ ऋग्वेदाय नमः। ॐ यजुर्वेदाय नमः। ॐ सामवेदाय नमः। ॐ अथर्ववेदाय नमः। ॐ कलशाय नमः। ॐ रुद्राय नमः। ॐ समुद्राय नमः। ॐ गङ्गायै नमः। ॐ यमुनायै नमः। ॐ सरस्वत्यै नमः। ॐ कलशकुम्भाय नमः ।।
अनामिका अंगुली से कलश का स्पर्श कर इन मन्त्रों को पढ़ें ।।
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ।।
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्त सप्तद्वीपा वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ।।
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशन्तु समाश्रिताः ।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ।
आयान्तु यजमानस्य दुरितक्षयकारकाः ।।
ततः कलशस्थ गंगागायत्रयादिभ्यो नमः इस मंत्र से पञ्चोपचार पूजन करें ।।
पूजनोपरान्त कलश में आवाहित देवताओं की प्रार्थना:-
ॐ देवदानवसम्वादे मध्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोसि तदा कुम्भ विघृतो विष्णुना स्वयम् ।।
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः ।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ।।
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः ।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः ।।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदः ।
त्वत्प्रसादादिदं कर्म कर्तुमीहे जलोद्भव ।
सान्निध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ।।
ब्राह्मणैर्निर्मितस्त्वं हि मन्त्रैरेवामृतोद्भवै: ।।
प्रार्थयामि च कुम्भ त्वां वाञ्छितार्थं ददस्व मे ।।
पुरा हि सृष्टश्च पितामहेन, महोत्सवानां प्रथमो वरिष्ठः ।
दुर्वाग्रसास्वश्वत्थसुपल्लवैर्
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्लाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ।।
जल लेकर:- ‘‘ॐ अनया पूजया कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्ताम्’’ यह पढ़कर जल छोड़ दें ।। इति कलशपूजाविधि ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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