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    भृगु संहिता के कुछ प्रमुख सूत्र; BALAJI ASTROLOGY CENTER.

    हैल्लो फ्रेण्डzzz

    भृगु संहिता के कुछ प्रमुख सूत्र:- यदि जन्म कुण्डली में किसी एक ही भाव में एक से अधिक ग्रह बैठे हों, जैसे दो, तीन, चार, पाँच, छः या सात ग्रह हों, तो उसे ग्रहों की युति कहा जाता है । विभिन्न भावों में अलग-अलग बैठे हुए ग्रह के सामान्य फलादेश की अपेक्षा ग्रहों की युति के फलादेश में बहुत अन्तर होता है । अत: ग्रहों की युति के फलादेश की अलग से जानकारी होना अति आवश्यक है ।।

    प्रस्तुत प्रकरण में सर्वप्रथम ग्रहों की युति के फलादेश का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है । आगे हम उदहारण कुण्डली के साथ जो मेष लग्न की है जिनमें विभिन्न ग्रहों की युति को प्रदर्शित करते हुए उनके फलादेश के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं । किन्तु विभिन्न जातकों की कुण्डलियाँ विभिन्न लग्नों की होती है तथा ग्रहों की युतियाँ भी विभिन्न घरों में होती है अत: इन उदहारण कुंडलियों को केवल आधार के रूप में ही देखना चाहिए ।।

    जब आपको किसी के कुण्डली में स्थित ग्रहों की युति का फलादेश करना हो तो ग्रहों की स्थिति जैसे उच्च-नीच, शत्रु-मित्र स्वराशिस्थ ग्रह एवं उनपर किसी भी अन्य ग्रहों की शुभाशुभ दृष्टि का विचार भी अवश्य करके ही उचित फलादेश अथवा निर्णय लेना चाहिए ।।

    ग्रहों की युति में राहू-केतु को स्थान न देकर केवल मुख्य सात ग्रहों को ही स्थान दिया गया है । राहू-केतु मित्र भाव में मित्र ग्रह के साथ जब होते हैं तो उसके शुभ फल की वृद्धि करते हैं । तथा यही जब शत्रु के साथ हो तो शुभ फल को घटाते हैं ये सामान्य सिद्धांत है ।।

    राहू-केतु स्वयं कभी एक साथ नहीं बैठते ये छाया ग्रह होने के कारण एक दुसरे के ठीक आमने-सामने अर्थात सातवें घर में बैठते हैं ।।

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    ।। नारायण नारायण ।।

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