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    श्री राम भुजङ्ग स्तोत्रम् ।। Astro Classes.

    Shri RAMA BHUJANGA STOTRAM. श्री राम भुजङ्ग स्तोत्रम् ।। Astro Classes, Silvassa.

    अथ श्री राम भुजङ्ग स्तोत्रम् ।। BALAJI VEDA VIDYALAYA.

    विशुद्धं परं सच्चिदानन्दरूपम्
          गुणाधारमाधारहीनं वरेण्यम् ।
    महान्तं विभान्तं गुहान्तं गुणान्तं
          सुखान्तं स्वयं धाम रामं प्रपद्ये ॥ १ ॥

    शिवं नित्यमेकं विभुं तारकाख्यं
          सुखाकारमाकारशून्यं सुमान्यम् ।
    महेशं कलेशं सुरेशं परेशं
          नरेशं निरीशं महीशं प्रपद्ये ॥ २ ॥

    शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे ।
    शिवस्य हृदयम् विश्णु विष्णोश्च हृदयम् शिवः ॥

    यदावर्णयत्कर्णमूलेऽन्तकाले
          शिवो राम रामेति रामेति काश्याम् ।
    तदेकं परं तारकब्रह्मरूपं
           भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ ३ ॥

     श्रीरामरामरामेति रमे रामे मनोरमे ।
     सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ॥

    महारत्नपीठे शुभे कल्पमूले
          सुखासीनमादित्यकोटिप्रकाशम् ।
    सदा जानकीलक्ष्मणोपेतमेकं
          सदा रामचन्द्रम् भजेऽहं भजेऽहम्  ॥ ४ ॥

    क्वणद्रत्नमन्जीरपादारविन्दम्
          लसन्मेखलाचारुपीताम्बराढ्यम् ।
    महारत्नहारोल्लसत्कौस्तुभाङ्गं
          नदच्चञ्चरीमञ्जरीलोलमालम् ॥ ५ ॥

    लसच्चन्द्रिकास्मेरशोणाधराभम्
          समुद्यत्पतङ्गेन्दुकोटिप्रकाशम् ।
    नमद्ब्रह्मरुद्रादिकोटीररत्न-
           स्फुरत्कान्तिनीराजनाराधितान्घ्रिम् ॥ ६ ॥

    'कोटीरोज्ज्वल-रत्न-दीपकलिका-नीराजनम् कुर्वते'।।

    पुरः प्राञ्जलीनाञ्जनेयादिभक्तान्
           स्वचिन्मुद्रया भद्रया बोधयन्तम् ।
    भजेऽहं भजेऽहं सदा रामचन्द्रं
           त्वदन्यं न मन्ये न मन्ये न मन्ये ॥ ७ ॥

    मोउन-व्याख्यान-प्रकटित-परब्रह्मतत्त्वं युवानम् ।
    वर्षिष्ठ-अन्तेवसद्-ऋषि-गणैरावृतं ब्रह्म-निष्ठैः ॥

    आचार्येन्द्रं करकलित-चिन्मुद्र-मानन्दरूपम्
    स्वात्मारामं मुदितवदनं दक्षिणामूर्तिमीडे ॥

    यदा मत्समीपं कृतान्तः समेत्य
          प्रचण्डप्रतापैर्भटैर्भीषयेन्माम् ।
    तदाविष्करोषि त्वदीयं स्वरूपं
          तदापत्प्रणाशं सकोदण्डबाणम् ॥ ८ ॥

    निजे मानसे मन्दिरे संनिधेहि
          प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचन्द्र ।
    ससौमित्रिणा कैकेयीनन्दनेन
          स्वशक्त्यानुभक्त्या च संसेव्यमान ॥ ९ ॥

    स्वभक्ताग्रगण्यैः कपीशैर्महीशै-
          रनीकैरनेकैश्च राम प्रसीद  ।
    नमस्ते नमोऽस्त्वीश राम प्रसीद
          प्रशाधि प्रशाधि प्रकाशं प्रभो माम् ॥१०॥

    त्वमेवासि दैवं परं मे यदेकं
          सुचैतन्यमेतत्त्वदन्यं न मन्ये ।
    यतोऽभूदमेयं वियद्वायुतेजो-
           जलोर्व्यादिकार्यं चरं चाचरं च ॥ ११ ॥

    नमः सच्चिदानन्दरूपाय तस्मै
           नमो देवदेवाय रामाय तुभ्यम् ।
    नमो जानकीजीवितेशाय तुभ्यं
           नमः पुण्डरीकायताक्षाय तुभ्यम् ॥ १२ ॥

    नमो भक्तियुक्तानुरक्ताय तुभ्यं
            नमः पुण्यपुञ्जैकलभ्याय तुभ्यम् ।
    नमो वेदवेद्याय चाद्याय पुंसे
            नमः सुन्दरायेन्दिरावल्लभाय ॥ १३ ॥

    नमो विश्वकर्त्रे नमो विश्वहर्त्रे
            नमो विश्वभोक्त्रे नमो विश्वमात्रे ।
    नमो विश्वनेत्रे नमो विश्वजेत्रे
            नमो विश्वपित्रे नमो विश्वमात्रे ॥ १४ ॥

    शिलापि त्वदन्घ्रिक्षमासङ्गिरेणु-
          प्रसादाद्धि चैतन्यमाधत्त राम ।
    नरस्त्वत्पदद्वन्द्वसेवाविधाना-
          त्सुचैतन्यमेतेति किं चित्रमद्य ॥ १५ ॥

    पवित्रं चरित्रं विचित्रं त्वदीयं
          नरा ये स्मरन्त्यन्वहं रामचन्द्र ।
    भवन्तं भवान्तं भरन्तं भजन्तो
          लभन्ते कृतान्तं न पश्यन्त्यतोऽन्ते ॥ १६ ॥

    'अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
     तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥'

    स पुण्यः स गण्यः शरण्यो ममायं
          नरो वेद यो देवचूडामणिं त्वाम् ।
    सदाकारमेकं चिदानन्दरूपं
          मनोवागगम्यं परन्धाम राम ॥ १७ ॥

    प्रचण्डप्रतापप्रभावाभिभूत-
          प्रभूतारिवीर प्रभो रामचन्द्र ।
    बलं ते कथं वर्ण्यतेऽतीव बाल्ये
          यतोऽखण्डि चण्डीशकोदण्डदण्डः ॥ १८ ॥

    दशग्रीवमुग्रं सपुत्रं समित्रं
           सरिद्दुर्गमध्यस्थरक्षोगणेशम् ।
    भवन्तं विना राम वीरो नरो वा-
           ऽसुरो वाऽमरो वा जयेत्कस्त्रिलोक्याम् ॥ १९ ॥

    सदा राम रामेति रामामृतं ते
          सदाराममानन्दनिष्यन्दकन्दम् ।
    पिबन्तं नमन्तं सुदन्तं हसन्तं
           हनूमन्तमन्तर्भजे तं नितान्तम् ॥ २० ॥

    यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं
          तत्र तत्र कृत-मस्तकाञ्जलिम् ।
    बाष्पवारिपरिपूर्ण-लोचनं
          मारुतिम् नमत राक्षसान्तकम् ॥

    सदा राम रामेति रामामृतम् ते
           सदाराममानन्दनिष्यन्दकन्दम् ।
    पिबन्नन्वहं नन्वहं नैव मृत्यो-
           र्बिभेमि प्रसादादसादात्तवैव ॥ २१ ॥

    असीतासमेतैरकोदण्डभूशै-
           रसौमित्रिवन्द्यैरचण्डप्रतापैः ।
    अलङ्केशकालैरसुग्रीवमित्रै-
           ररामाभिधेयैरलम् देवतैर्नः ॥ २२ ॥

    अवीरासनस्थैरचिन्मुद्रिकाढ्यै-
            रभक्ताञ्जनेयादितत्त्वप्रकाशैः ।
    अमन्दारमूलैरमन्दारमालै-
            ररामाभिधेयैरलम् देवतैर्नः ॥ २३ ॥

    असिन्धुप्रकोपैरवन्द्यप्रतापै-
             रबन्धुप्रयाणैरमन्दस्मिताढ्यैः ।
    अदण्डप्रवासैरखण्डप्रबोधै-
              ररामभिदेयैरलम् देवतैर्नः ॥ २४ ॥

    हरे राम सीतापते रावणारे
             खरारे मुरारेऽसुरारे परेति ।
    लपन्तं नयन्तं सदाकालमेव
             समालोकयालोकयाशेषबन्धो ॥ २५ ॥

    नमस्ते सुमित्रासुपुत्राभिवन्द्य
           नमस्ते सदा कैकयीनन्दनेड्य ।
    नमस्ते सदा वानराधीशवन्द्य
           नमस्ते नमस्ते सदा रामचन्द्र ॥ २६ ॥

    प्रसीद प्रसीद प्रचण्डप्रताप
           प्रसीद प्रसीद प्रचण्डारिकाल ।
    प्रसीद प्रसीद प्रपन्नानुकम्पिन्
           प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचन्द्र ॥ २७ ॥

    भुजङ्गप्रयातं परं वेदसारं
           मुदा रामचन्द्रस्य भक्त्या च नित्यम् ।
    पठन् सन्ततं चिन्तयन् स्वान्तरङ्गे
           स एव स्वयम् रामचन्द्रः स धन्यः ॥ २८ ॥

    ।। इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितम् श्रीरामभुजङ्गप्रयातस्तोत्रम्  सम्पूर्णम् ।।

    ॐ श्री-सीता-लक्ष्मण-भरत-शतृघ्न-हनूमत्समेत-श्रीरामचन्द्रपरब्रह्मार्पणमस्तु ।।

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